अस्सलाम वालेकुम दोस्तों वैसे तो सब दिन अल्लाह ताला ने बनाए हैं मगर जुम्मे के दिन की अहमियत को बयां करते हुए अल्लाह ताला के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया
अल्लाह ताला ने हमसे पहले के लोगों को जुम्मे से महरूम रखा इसी तरह वह कयामत के दिन भी हमसे पीछे होंगे हम दुनिया में आए तो आखिर में है लेकिन कयामत के रोज हम पहले होंगे और तमाम उम्मतों में सबसे पहले हमारा फैसला किया जाएगा
जुम्मे का दिन तमाम दोनों का सरदार है और अल्लाह के नजदीक सबसे ज्यादा अजमत वाला है यह दिन अल्लाह के यहां ईद उल फितर और ईद उल जुहा से भी ज्यादा फजीलत रखता है
जुम्मे के दिन की दुआ
अस्सलाम वालेकुम मेरे प्यारे इस्लामी भाइयों और बहनों आज हम इन्हीं बातों पर रोशनी डालेंगे जुम्मे के दिन की खास फज़ीलत है हिंदी में आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने आप फरमाया आम दिनों के मुकाबले जुम्मा का दिन बहुत अफजल है
नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया है कि तमाम दिनों से बेहतर जुम्मे का दिन है इसी दिन हजरत आदम अलैहिस्सलाम को पैदा किया गया और जुम्मे का दिन उन्हें जन्नत में दाखिल किया गया
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जुम्मे का दिन एक ऐसी घड़ी है कि अगर कोई मुसलमान उसे वक्त अल्लाह ताला से पूरे दिल से दुआ मांगेगा तो वह दुआ जरूर कबूल होगी
- जुमे की नमाज की कितनी रकात होती है
- जुमे की नमाज का टाइम
- जुम्मे रात किस दिन को कहते हैं
- जुम्मा का अर्थ
- जुमे की नमाज हिंदी में
- जुमे की नमाज का तरीका
- जुम्मा की नमाज
- सूरह जुमा किस पारा में है
जुम्मा के दिन पढ़ने वाली दुआ हिंदी मैं
अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिव व अला आलि मुहम्मदिन कमा सल्लैता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद
अल्लाहुम्मा बारिक अला मुहम्मदिव व अला आलि मुहम्मदिन कमा बारक्ता अला इब्राहीम व अला आलि इब्राहीम इन्नक हमीदुम मजीद
सूरह कैफ की फजीलत
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जुम्मे के दिन सूरत कैफ की तिलावत किया करो जुम्मे के दिन सूरत कैफ की तिलावत करने वाले के लिए दो झूम के दरमियान एक रोशन नूर होता है
जो शब्द इसकी शुरुआती 10 आयतों को याद कर लेगा और तिलावत करेगा वह शख्स dajjaal के fitne से महफूज रहेगा
सूरह कैफ पढ़ने के फायदे
- पहला फायदा है कि इससे अगले 8 दिन यानी अगले जुम्मे तक हर fitne से महफूज रहेगा और साथ ही साथ dajjaal ke fitne से भी हिफाजत होगी
- दूसरा फायदा यह है कि यह सूरत कब्र में अजब महफूज रखती है
जुम्मे के दिन क्या-क्या पढ़ना चाहिए
दोस्तों अगर इंसान को अपनी इबादत करने के लिए बनाया हे जुम्मे के दिन वैसे तो बहुत सारे अमल होते हैं मगर यहां हम जुम्मे के दिन का अमल आपको बताने जा रहे हैं जिसे पढ़कर आप बहुत फायदा उठा सकते हैं
नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जुम्मे का दिन और जुम्मे रात की रात में मुझ पर करत है दुरूद पढ़ा करो जो मुझ पर एक मर्तबा दूर पड़ता है तो अल्लाह ताला पर बस रहने देना दिल फरमाता है|
नव्या कारण सल्लल्लाहो वाले वसल्लम ने फरमाया कि जो कोई जुम्मे के दिन सूरत कैफ की तिलावत करता है तो अल्लाह ताला उसके लिए दो जून तक नूर रोशन कर देता है सूरत कैफ की आगाज की 10 आए तो हमें इसकी फजीलत का जिक्र आप देख सकते हैं|
सूरह जुमा पढ़ने की फ़ज़ीलत
अस्सलाम वालेकुम व रहमतुल्लाही वा बाराकटुह सूरह जुमा में कुल 11 आए थे और यह सूरत मदनी है और हमारे इस्लाम में किसी भी काम को अंजाम देने से पहले अल्लाह ताला का नाम लेना चाहिए तो हम सबसे पहले अल्लाह के नाम से शुरू करते हैं बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम |
सूरज जमा जुम्मे के दिन किसी भी वक्त पढ़ सकते हैं यह सूरत कुरान पाक के 28 में पारे में
है|सूरज जमा मदनी सूरत है क्योंकि यह मदीना मुनव्वरा में नाजिल हुई थी|
जुम्मे की नमाज पढ़ने का सही वक्त
दोस्तों आज हम आपको बताने वाले हैं कि जुमे की नमाज पढ़ने का सही वक्त क्या होता है जुम्मे की अजान दिन के 12:30 बजे होती है
और हर मस्जिद में जुम्मे की जमात का वक्त अलग-अलग होता है किसी मस्जिद में 1:00 से जमात होती है तो किसी में 1:30 बजे से और किसी में 1:45 पर इस तरह जुम्मे की नमाज का वक्त होता है और अजान 12:30 बजे से ही शुरू हो जाती है
जुम्मे की नमाज में कितनी रकात होती है
दोस्तों आज हम आपको बताने वाले हैं कि जुमे की नमाज में कितनी रकात होती है जुम्मे की नमाज में टोटल 14 रकात होती है
सबसे पहले तो आप कर रकात सुन्नत नमाज पढ़ते हैं और फिर दो रकात फर्ज इमाम साहब के साथ फिर इसके बाद आपको चार रकात सुन्नत पढ़नी है और फिर दो रकात सुंदर और दो रकात नफिल पढ़ना है
जुम्मे की नमाज पढ़ने का सही तरीका क्या है
आज हम आपको बताने वाले हैं कि जुमे की नमाज पढ़ने का सही तरीका क्या है चलिए दोस्तों देखते हैं देखिए दोस्तों जुम्मे की नमाज पढ़ने के लिए सबसे पहले आपको वजू करना बहुत जरूरी है
क्योंकि बिना मौजूद किए नमाज नहीं होती है ध्यान रहे की वजू इत्मीनान और सही तरीके के साथ होना चाहिए इसलिए आपको सबसे पहले वजू का तरीका सीखना चाहिए
ज्यादा से ज्यादा कोशिश करें कि वजू अपने घर से ही बना कर जाए इसका भी जवाब मिलता है फिर जब मस्जिद में जाने लगे तो मस्जिद में दाखिल होने की दुआ को जरूर पढ़ें फिर मस्जिद के अंदर दाखिल हो
इसके बाद अगर आपके पास ज्यादा समय है तो सबसे पहले दो रकात मस्जिद में दाखिल होने की सुन्नत पड़े फिर कर रकात जुम्मे की सुन्नत पड़े फिर इमाम की खुद में सुन खुतबा मुकम्मल होने के बाद इमाम के साथ फर्ज नमाज के लिए खड़े हो जाए
जुम्मे की नमाज पढ़ने की नियत
देसी दोस्तों हर नमाज की नियत अलग-अलग होती है फर्ज सुन्नत नफिल इस तरह दो रकात जुम्मे की फर्ज नमाज के लिए बाकी नमाज की तरह अलग होती है
नियत : नियत करता हूं मैं दो रकात नमाज जुम्मे की फर्ज वास्ते अल्लाह ताला के पीछे इस इमाम के मुंह मेरा तरफ काबा शरीफ के अल्लाह हू अकबर
नियत करने के बाद अपने दोनों हाथों के उंगलियों को अपने कानों के ला तक लाना है फिर दोनों हाथों को नाफ के नीचे बांध लेना है फिर सना पढ़ना है
सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबारका इस्मुका व तआला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका”।
फिर दूसरा बताओ पड़े यानी के आउट बिलही मिनेश सेट करो इसके बाद आप चुप हो जाओ मॉम की अहमद अली फिर सूरत सुन सूरत पढ़ने के बाद इमाम साहब पर अल्लाह अकबर कहेंगे और रुको मैं जाएंगे तो आपको भी रुको में चले जाना है
फिर इमाम बोलेगा समी अल्लाह हुलेमन हमीदा तो आप कहेंगे रब्बना लकल हम्द फिर अल्लाह हू अकबर कहते हुए सजदे में चले जाए।
दो सजदे होगा और दोनों सजदे के दरमियान कम से कम आप तीन मर्तबा सुब्हान रब्बियल आला कहें।
फिर इमाम बोलेगा समी अल्लाह हुलेमन हमीदा तो आप कहेंगे रब्बना लकल हम्द फिर अल्लाह हु अकबर कहे |
औरत को जुम्मे के दिन जुम्मे की नमाज पढ़ना चाहिए या जौहर की ?
औरतों की फ़ितनो की वजह से घर में ही नमाज पढ़नी पड़ती है इसलिए जुम्मे के दिन अपने घरों पर जौहर की नमाज पढ़ने कोई कोई औरतें अपने घरों में जुमे की नमाज पढ़ती है तो उनकी नमाज नहीं होती है और जोहर की नमाज बाकी रह जाता है तो इसलिए औरतों को चाहिए कि जुमे की नमाज को ना पढ़ कर दो हर की नमाज़ पढ़े |
जुम्मे की नमाज में और दूसरी नमाज में क्या फर्क है ?
जुम्मे की नमाज जमात के साथ पढ़ी जाती है और दूसरी नमाज बिना जमात के साथ अभी पढ़ी जाती है और इमाम जुम्मे की नमाज से पहले खुत्बा पढ़ते हैं और दूसरी नहीं होता यही फर्क है जुम्मे की नमाज में और दूसरी नमाज में |
जुम्मे की नमाज पढ़ने के लिए इमाम के अलावा कम से कम कितने मर्द होने चाहिए ?
जुम्मे की नमाज जमात के साथ पढ़ने के लिए कम से कम तीन तीन मर्द का होना जरूरी है मैं मर्द लफ्ज़ लिया हूं इसका मतलब यह है कि मर्द ना हो और सिर्फ तीन औरत हो तो जमात कायम नहीं किया जा सकता
हमारे कहने सुनने से ज्यादा अल्लाह ताला हमें अमल की तौफीक अता फरमाए|
उम्मीद करती हूं कि आपको मेरा यह जुम्मे के दिन की फजीलत और नमाज का तरीका और जुम्मे के दिन क्या-क्या पढ़ना चाहिए इन सब के बारे में हमने आपको इस आर्टिकल में बताया है
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